रहस्य

दो महीनों की छुट्टियों का भरपूर आनंद लेने के बाद आप कॉलेज जाते हैं। नयी कक्षाएं, अध्यापक, समयसारणी और नए अनुभव।

पर कुछ चीज़ें है जो अभी भी वैसी ही हैं। आप सुबह उठते हैं, तैयार होते हैं, और कॉलेज के लिए निकलते हैं।  आधा घंटा बस स्टॉप पर इंतज़ार करने के बाद एक बस आती है जो पहले से ही खचाखच भरी होती है। भीड़ इतनी होती है कि दस में से दो ही चढ़ पाते हैं। और बाकी या तो अपनी किस्मत को कोसते है या मन में गाली देकर गुस्से को शांत कर लेते हैं। और अगली बस का इंतज़ार करते हैं। 

वो बस जो प्रत्येक दिन हज़ारो लोगों का बोझ उठती है और अब अपनी रिटायरमेंट का इंतज़ार कर रही है, आज भी चल पड़ती है। फिर अगले हर स्टॉप पर यही होता है। लोग चढ़ते हैं, धक्का खाते हैं,  गाली देते हैं, कोसते हैं, गुस्सा करते हैं, पीछे छूटे लोग कुढ़ के रह जाते हैं। 

कंडक्टर को भी हर दिन अपनी जान से खेलना पड़ता है - इतने सारे लोगो से भिड़ना कोई आसान काम नहीं।  वह बोलता जाता है - आगे बढ़ो, जगह दो, आगे बढ़ो, अरे इतने जगह तो है आगे। कुछ को झूठा आश्वासन देके भी काम चलाना पड़ता है - पीछे बस आ रही है, उसमें आना। किसी को समझ नहीं आता की इस भीड़ का कारण क्या हैं।  

अंत में पसीने से तरबतर आप अपने गंतव्य पहुँचते हैं। और इस उम्मीद में आगे(कक्षा की ओर) बढ़ते हैं कि दिन के शेष भाग में और किसी समस्या से आपको जूझना ना पड़े। 

तो अब चूँकि आप थोड़ा थक चुके है और गर्मी भी काफी है तो प्यास लगना स्वाभाविक है पर नलके को घुमाने पर एक दो बूँद ही गिरती है। आप सभी नलकों पर हाथ आज़माते  हैं पर कोई फायदा नहीं। अब आप पानी की तलाश में निकलते है।  मैन वर्सेज़ वाइल्ड से सीखे गुर आप यहाँ आज़मा सकते हैं। काफी जगह जाँचने के बाद आपको कहीं पानी मिलता है और आप अपनी प्यास बुझाते हैं। 

दौड़े-भागे आप कक्षा में पहुंचते हैं। शिक्षक आता है नए सेमेस्टर की प्रस्तावना देता है। विषय की रूपरेखा रखता है। और फिर जैसे ही श्यामपट्ट (ब्लैकबोर्ड ) पे लिखने को जाता है तो पता चलता है कक्षा में चॉक नहीं है, और न ही डस्टर। एक लड़का दौड़ाया जाता है। अगल - बगल कमरों का ज़ायज़ा लिया जाता है पर इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि वहाँ का हाल भी ऐसा ही है। फिर कहीं से दो एक दुकड़े मिल ही जाती हैं, और डस्टर की  जगह एक कपडा। कपड़े तो वैसे भी कई जगह काम में आ जाते हैं। किसी तरह पीरियड ख़त्म होता है।

अब प्रयोगशाला की बारी आती है। प्रयोगशालाएं अपने में बहुत महत्व रखती है क्योंकि विद्यार्थी तभी कुछ सीख पायेगा जब वह उसे खुद से करके देखेगा, भिन्न भिन्न मापदंडों और उनके परिणामों को जानेगा। पर क्या कहे, यहाँ भी हाल कुछ ऐसा ही है। कुछ प्रयोगशालाएं जिनमे पिछले सेमेस्टर से खुदाई शुरू हुई अभी भी खोदी जा रही है। तो सीटों की कमी के कारण पर ये हवाला दिया जाता है। और बच्चों से इसी हालत में काम चलाने को कहा जाता है। बच्चे भी अचरज में खड़े खड़े ही ज्ञान लेने की कोशिश करते है। 

to be continued...

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